कहते हैं शिक्षा पर हम सभी का बराबर अधिकार है, फिर चाहे वो छोटा हो या बड़ा हम सभी को सीखना और बांटना चाहिए, इसी उद्देश्य के साथ मै मास्टर लीडर माधव कुमार मौर्य, डीएवी पीजी कॉलेज, वाराणसी, अपने गाँव सालारपुर, सारनाथ में उन बच्चो को उनका हक दिलाने का प्रयास कर रहा हूँ।
एक दिन मै और मेरे कुछ दोस्त, दूसरे गॉव मे घूमने के लिए गये थे, हमलोगो ने वहां पर देखा कि बहुत से छोटे-छोटे बच्चे जिनकी उम्र अभी पढ़ने-लिखने की है। वो घर का काम कर रहे है, कुछ बिना किसी मतलब के घूम रहे है। हमारे एक दोस्त ने एक लड़के से पूछा “स्कूल काहै ना गईलै” (स्कूल क्यों नहीं गए) इसपर उस लड़के ने जवाब दिया “सुबह मे त घरै काम रहैला, सांझे क कउनौ स्कूलहव तै बतावा” (सुबह में तो घर का काम रहता है, अगर शाम में कोई स्कूल है तो बताइए)। लड़केकी बातों में दम था…
लड़के की बात सुनकर हमारे मन में एक विचार आया, क्यों न हम लोग इन बच्चो को शाम के समय ट्यूशन दिया करें, क्योंकि हमलोग भी शाम को खाली ही रहते हैं कॉलेज से आने के बाद तो पढ़ाने मे कोई दिक्कत नही है।
‘अच्छी पहल की शुरुआत आसान नहीं होती, नई राह बनाने के लिये समस्याएं झेलनी ही पड़ती हैं’और ये उसी की एक शुरुआत थी…
हम लोगोंने यह काम करने का पूरा मन बना लिया। अब हमको एक ऐसी जगह ढूंढनी थी जहाँ पर अधिक से अधिक बच्चे आ सकें और किसी को कोई दिक्कत भी न हो, मैने सभी बच्चों को अपने घर पर ही बुलाने की सोची। क्योंकि वहां पर एक बडा हॉल है जहाँपर एक साथ लगभग 80 लोग बैठ सकते है। मैने बच्चो को इस ट्यूशन के बारे मे बताने के लिए अपने दोस्तों की मदद ली, शुरुआत में हमने चुनिंदा बच्चों पर ध्यान दिया। इसका मुझे बहुत ही जल्द अच्छा परिणाम देखने को मिला। सिर्फ एक हप्ते के अन्दर 50 बच्चे पढ़ने के लिए आ गये।
ट्यूशन शुरु तो हो गया लेकिन बच्चे शाम को आते थे, तो हम लोगों को लाईट की आवश्यकता महसूस हुई। हम लोगों ने पहले अपने पास से ही पैसे मिलाकर 02 LED बल्ब लगाया और बिजली कनेक्शन के लिए हमने गॉव के भूतपूर्व प्रधान से बात की, वो हमलोगों की पहल के बारे मे सुन कर काफी खुश हुए और कनेक्शन देने के लिए मान गये। साथ मे यह भी कहा कि हमारे यहॉ के भी चार बच्चों को पढ़ाइये, हमने मौके को हाथ से जाने नहीं दिया और तुरंत “हॉ” बोल दिया। क्योंकि यह सोचना बनता है कि जहाँ प्रधान के बच्चे पढ़ रहे हैं वहां गुणवक्ता है तभी तो।
कुछ दिन बीतने के बाद हम लोगों को एक सफेद बोर्ड की आवश्कता हुई, चूंकि हम लोग इतना पैसा नही लगा सकते थे तो हम लोगों ने अब दूसरों को अपने काम के बारे में बताया और उनसे सहायता के लिए कहा और उनमें से सभी लोगो ने हमारे कार्य को सराहा और सहायता के लिए हाथ बढ़ाया। आख़िरकार हम लोगों ने बोर्ड भी खरीद लिया। इधर बच्चे अभी भी बढ ही रहे थे तो उनको पढ़ाने मे थोडी दिक्कते भी आ रही थी क्योकि वे एक ही कक्षा के नही थे। इसलिए हमने तीन बैच बनाए जिससे कि सभी बच्चों पर ध्यान दिया जा सके और हमको भी कोई परेशानी न हो।
हमलोग दूसरी मंजिल पर पढ़ाते थे। शाम के समय बहुत गर्मी हो जाती थी, तो हमने किसी से पंखे का इंतजाम करा लिया। किसी ने बच्चो को पानी पीने के लिए व्यवस्था कर दी। कुछ दिन पहले ही एक आंटी जी ने कुछ पैसे दिए ओर बोली कि “ये कुछ पैसे रख लो तुमको बाद मे काम आएंगे “यह सुनकर हमको ऐसा लगा कि जैसे ये मेरा प्रोजेक्ट नही पूरे गॉव का ही प्रोजेक्ट (पहल) हो गया है। सभी अपने अपने हिसाब से मदद कर रहे है और उन्हे अच्छा भी लग रहा है कि उनके गॉव मे कोई फ्री(मुक्त) मे पढ़ाता है। उन्हें गर्व महसूस होता है जब दूसरे गॉव के लोग भी उनसे ट्युशन के बारे मे पुछते है।
हम लोगों के पहल, सफल होन के बाद दूसरे गॉव के लड़के भी यही काम करने के लिए उत्सुक दिख रहे हैं। वे हमारे यहाँ आते हैं और कैसे बच्चो के साथ communication किया जाता है और बच्चो को आसान भाषा मे पढ़ाया जाता है। यह सभी चीजों की जानकारी ले रहे हैं। हमको आशा है कि वे जल्द ही एक और बच्चो के लिए फ्री ट्यूशन खोल देंगे।